नई दिल्ली, 25 मई (आईएएनएस)| देश में कोरोना के बाद अब ब्लैक फंगस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। कई राज्यों ने इसे महामारी घोषित कर दिया है। बिहार, हरियाणा, गाजियाबाद में अब वाइट और यलो फंगस के मामले सामने आए हैं। इसी बीच डॉक्टरों की इन सभी फंगस पर अलग – अलग राय देखने को मिल रही हैं।
हाल ही में गाजियाबाद में एक मरीज मे येलो फंगस का मामला सामने आया। येलो फंगस (म्यूकर स्पेक्टिक्स) कहे जाने वाले इस फंगस पर कुछ डॉक्टर का कहना है कि इसपर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। हालांकि, कुछ डॉक्टर ने साफ किया कि मेडिकल लिटरेचर में येलो फंगस नाम का कोई शब्द ही नहीं हैं।
राजस्थान जोधपुर एम्स अस्पताल के डॉ अमित गोयल ने आईएएनएस को बताया कि, येलो फंगस का एक मामला सामने आया है और इसका कोई ऑथेंटिक सोर्स नहीं है। जिधर ये रिपोर्ट हुआ है, इसको और देखना होगा। इसलिए इसपर कुछ भी कहना जल्दीबाजी होगी।
दिल्ली एम्स अस्पताल के डॉकटर नीरज निश्छल ने आईएएनएस को बताया कि, येलो फंगस के नाम से कुछ साफ बयान नहीं होता कि किस बारे में बात हो रही है। मेडिकल लिटरेचर में येलो फंगस नाम का कोई शब्द होता नहीं हैं, इसपर कुछ भी कहना ठीक नहीं।
रंग के आधार पर कोई फंगस तय नहीं होता। इस तरह की बातें होना लोगों में डर पैदा करता है। जिससे परेशानियां होती है।
उनका कहना है, ब्लैक फंगस का मतलब (म्यूकरमाइकोसिस) है। व्हाइट फंगस में अभी तक लोगों में दुविधा है कि एस्परगिलोसिस या कैंडिडिआसिस दोनों में किस की बात हो रही है? पटना के डॉक्टर की डिस्क्रिप्शन के आधार पर हम मान सकते है कि कैन्डिडा की बात कही है, कुछ डॉक्टर कहे रहे है एसपरगिलोसिस की बात की होगी।
हमें ये भी सोचना होगा कि हम किस फंगस की बात कर रहें हैं ? बिना जांच कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा। क्योंकि जिधर भी गंदगी होगी उधर फंगस आएगा। फंगस बीमारी बहुत साधरण है, यह मरीजों में पहले भी नजर आती थी। लेकिन सभी फंगस को कोविड़ से जोड़ना ठीक नहीं है।
हालांकि बताया ये भी जा रहा है कि कैंसर, डायबिटीज जैसी बीमारियां वाले मरीजों को या वो मरीज जो लंबे समय से स्टेरॉयड ले रहे होते हैं, उनकी इम्युनिटी वीक होती है। जिसके कारण मरीजों को फंगल डिजीज होने का खतरा बढ़ जाता है।
दिल्ली के एलएनजी अस्पताल में आपातकालीन विभाग की प्रमुख डॉ ऋतु सक्सेना ने आईएएनएस को जानकारी देते हुए बताया कि, इन सभी फंगस से थ्रेट हो सकता है। लेकिन समस्या ये है कि हम फंगस को अलग अलग नाम दे रहे हैं। ब्लैक फंगस तो अब मरीजों में दिख रहा है, लेकिन ये पहले भी होते थे।
एचआईवी मरीजों में, किसी को लंबे वक्त मरीज में टीवी हो, आईसीयू में लंबे समय तक रहकर ठीक होने वाले मरीज, उनमें भी ये फंगस होते हैं।
जिस तरह से बैक्टीरिया होते है उसी तरह फंगस के भी कई टाइप्स होते हैं। येलो फंगस की अभी तक कोई रिपोर्ट नहीं है। इसपर जांच हो तभी पता चलेगा।
जानकारी के अनुसार, देश में ऑक्सीजन शॉर्टेज होने पर कोरोना मरीजों को इंडस्ट्रीज को दी जाने वाली ऑक्सीजन दी गई इसकी वजह से भी फंगल इन्फेक्शन बढ़ाने की बात सामने आई। कोरोना मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर होते हैं उन्हें भी ब्लैक और वाइट फंगस होने का खतरा रहता है।
इसपर डॉ ऋतु ने कहा कि, इस बार ऑक्सिजन हाइजीन का प्रॉब्लम था, कुछ ऑक्सिजन जो इस्तेमाल की गई उसमें काफी दिक्कत आई। क्योंकि इंडस्ट्रियल ऑक्सिजन इस्तेमाल हुई है।
डॉक्टरों के अनुसार कोरोना के इलाज में जिंक का इस्तेमाल म्यूकरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस का कारण हो सकता है। इसके अलावा फंगल इंफेक्शन के पीछे का अहम कारण स्टेरॉयड को भी बताया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि, जिंक का बहुत ज्यादा इस्तेमाल हुआ इसके कारण भी इंफेक्शन बढ़ गए हैं। फंगस से ग्रहसित मरीज अब आईसीयू में भर्ती होने लगे है इसलिए इसे थोड़ा गंभीरता से लेना होगा।
स्टेरॉयड का सही इस्तेमाल, ऑक्सीजन या वेंटिलेटर उपकरण विशेषकर ट्यूब जीवाणु मुक्त होने चाहिए। इसके अलावा कोविड से ठीक होने वाले मरीजों के आस पास साफ सफाई रखी जाए, यही इसका बचाव है।
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