November 15, 2024

भारत तभी बेहतर हो सकता है जब हम देश की सच्ची भावना का एहसास करें : संजीब चट्टोपाध्याय

कोलकाता, 14 अगस्त (आईएएनएस)| समृद्धि को लेकर हर किसी की अपनी-अपनी धारणाएं होती हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि ज्यादा धन होना बेहतर बने रहने का एक तरीका है। कुछ लोग सोच सकते हैं कि एक आत्मनिर्भर देश जो बड़ी संख्या में सैनिकों और हथियारों से लैस है, वह हमें खुश कर सकता है। वहीं कुछ अन्य लोगों के लिए खुशी उनके भरे-पूरे अन्न भंडार हो सकते हैं। खुशी का अर्थ और बेहतर भविष्य की अवधारणा प्रत्येक व्यक्ति के साथ भिन्न-भिन्न होती है।
एक बात हमें स्वीकार करनी चाहिए कि किसी व्यक्ति के विकास को देश के समग्र विकास से अलग नहीं किया जा सकता है। आइए हम सोचते हैं कि जब किसी व्यक्ति को एक सम्मानजनक आय के साथ उचित नौकरी मिलती है। तो वह देश की संभावना का एक उदाहरण के अलावा और कुछ नहीं है। इसी तरह, जब कोई व्यवसायी अपने व्यवसाय के माध्यम से पर्याप्त धन कमाता है तो वह अंतत: राज्य के खजाने में योगदान देता है। इसलिए, देश की बेहतरी का व्यक्ति की संभावनाओं से गहरा संबंध है।
अब, यदि आप मुझसे पूछें कि देश की मेरी बेहतरी की अवधारणा क्या है, तो मैं एक ही वाक्य में कह सकता हूं कि किसी देश की बेहतरी धर्म की स्थापना पर उसकी सफलता पर निर्भर करती है। जब मैं ‘धर्म’ कहता हूं तो मेरा मतलब हिंदू धर्म से नहीं है। बौद्ध, जैन, ईसाई या इस्लाम। मेरा मतलब एक सार्वभौमिक धर्म है जो संकीर्ण धार्मिक मान्यताओं की सीमाओं से परे है

धर्म क्या है? धर्म कई प्रकार के होते हैं लेकिन धर्म का मूल है मनुष्य की भलाई के लिए काम करना। हमारे प्राचीन काल में राजा का प्राथमिक कर्तव्य क्या था? राजा का प्राथमिक कर्तव्य प्रजा के हित के लिए कार्य करना है और यही ‘राज धर्म’ कहलाता है। इसलिए, धर्म शब्द किसी व्यक्ति की धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी अवधारणा है, जहां लोग बिना किसी रुचि के अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे।

यही धर्म है। इससे भारत नाम के खूबसूरत देश बनाने में मदद करेगा। वह ‘सत्यम, शिवम और सुंदरम’ की बात करेगा, जो पूर्णता की हमारी शाश्वत अवधारणा को प्रदर्शित करता है।

भारत विविधताओं का देश है। शंकराचार्य का उदाहरण लें जिनके लिए एक व्यक्ति और देश अलग नहीं है। उन्होंने देश को छह भागों में विभाजित किया था, जहां कन्याकुमारी को ‘रूट चक्र’ माना जाता है जो रीढ़ के नीचे रहता है और बद्रीनाथ ‘क्राउन चक्र’ है जो हमारे सिर के शीर्ष पर रहता है।

शंकराचार्य के अनुसार हमारी यात्रा ‘रूट चक्र’ से ‘क्राउन चक्र’ तक, कन्याकुमारी से बद्रीनाथ तक है जहां हम अपने मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

हम आसानी से समझ सकते हैं कि इस देश के लोगों को इसकी वास्तविक भावना को समझने के लिए देश की विविधता का पता लगाना होगा। हमारे देश की सुंदरता बांध बनाने या मंगल ग्रह पर जाने में नहीं है। वैज्ञानिक उपलब्धियां निश्चित रूप से महत्वपूर्ण हैं लेकिन हमारे देश की असली बेहतरी देश की सच्ची भावना की प्राप्ति में निहित है और इसके लिए हमें कुछ सही सोच वाले लोगों की जरूरत है जो आगे आकर हमें हमारे विश्वास की जड़ तक ले जाएंगे। वही ‘बेहतर भारत’ बना सकता है।

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