नई दिल्ली, 16 दिसंबर (आईएएनएस)| निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में चार दोषियों को मौत की सजा दिए जाने के महीनों बाद, पीड़िता की मां का कहना है कि मेरी बेटी को न्याय मिला, फिर भी कई ऐसी पीड़िताएं हैं जो अपनी बात सुनाने के लिए अभी भी हर दरवाजे पर दस्तक दे रही हैं। अपराधियों को मौत की सजा के बाद पहली बार निर्भया की मां आशा देवी ने आईएएनएस से बात की। आशा देवी के शब्दों में :
आठ साल बीत चुके हैं, इस साल की शुरुआत में दोषियों को सजा दी गई थी। मीडिया और समाज सहित सभी ने हमारा पूरा समर्थन किया, लेकिन अभी भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं और कई परिवार ऐसे हैं, जिनकी बेटियों को अभी तक न्याय नहीं मिला है।
निर्भया को न्याय मिला, लेकिन मैं उन सभी माताओं को बताना चाहूंगी जो अपनी बेटियों के लिए न्याय का इंतजार कर रही हैं कि हमें अपनी न्यायिक प्रणाली पर भरोसा करना होगा।
जब मेरे साथ यह घटना घटी, तो मैं घबरा गई, झिझक रही थी, यह सोचकर गुस्सा थी कि मेरी बेटी पहले ही मर चुकी है। बाद में मुझे एहसास हुआ कि हम कम से कम अपनी बेटी को न्याय दिला सकते हैं।
तो मैं आप से कहूंगी कि कोई संकोच न करें, क्योंकि ऐसे दोषियों को सजा देने की जरूरत है।
हालांकि न्यायपालिका के तीनों स्तरों से सजा की पुष्टि की गई थी लेकिन उन्हें फांसी की सजा मिलने में आठ साल लग गए। इसलिए हम अपने सिस्टम में खामियों को दूर करेंगे और बदलाव के लिए जोर लगाएंगे।
26 दिसंबर, 2012 को एक फिजियोथैरेपी छात्रा की निर्मम सामूहिक दुष्कर्म और हत्या, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था, इस मामले में चार दोषियों को इस साल 20 मार्च को फांसी दी गई।
छह में से चार आरोपियों विनय, अक्षय, पवन और मुकेश को 20 मार्च की सुबह 5.30 बजे फांसी दी गई।
बेहद निर्ममता से किया गया दुष्कर्म इन अपराधियों के पागलपन का एक उदाहरण था, जिन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि वे किसी इंसान पर हमला कर रहे हैं। वे सब कुछ कर चुके थे, लेकिन मेरी बेटी जीवट थी और मेरी बेटी ने आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी।
हम चाहते थे कि दोषियों को तुरंत सजा दी जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका, इसमें कई साल लग गए और हमें कई लड़ाइयां लड़नी पड़ीं, लेकिन आखिरकार हमने न्याय हासिल कर लिया।
वह 23 साल की फिजियोथेरेपी की छात्रा थी। उसकी आंखों में कई सपने थे। जब आखिरी बार वह घर से बाहर निकली तो हमें बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि हमारी दुनिया हमेशा के लिए बदल जाएगी।
हम अंधेरा, दर्द और नाउम्मीदी से भरी एक सुरंग में जा फंसे थे। लगा था, इसे हम कभी भी पार नहीं कर पाएंगे। लेकिन हमारे देश की न्याय व्यवस्था, हमारी पुलिस और उन सभी डॉक्टरों ने, जिन्होंने उसे कुछ और दिनों तक जिंदा रखा, हमारे साथ इस लड़ाई में थे।
अचानक, एक दिन मेरी बेटी की मौत हो गई जो कि न सिर्फ मेरी बेटी, बल्कि भारत की निर्भया थी, जिसके साथ छह लोगों ने 16 दिसंबर, 2012 की रात चलती बस में दरिंदगी की।
13 दिनों तक वह एक शेरनी की तरह लड़ी, अभी भी मैं उसके दर्द को याद करके सिहर उठती हूं।
हमलावरों ने उसकी योनि के अंदर लोहे की रॉड घुसा डाली और उसकी आंतों को अलग कर दिया। वहशी दरिंदों की क्रूरता ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था।
देश के दुष्कर्म कानूनों में जो बदलाव किए गए हैं, उससे उम्मीद है कि ये दूसरों को बचाएंगे। आशा है कि इंसान के भेष में मौजूद शैतान एक दिन रुक जाएगा। एक दिन कुछ उन्हें रोक देगा।
(दिल्ली पुलिस ने मामले में तेजी लाई और घटना के कुछ दिनों के भीतर किशोर सहित सभी दोषियों को गिरफ्तार कर लिया गया था। नाबालिग आरोपी का मामला किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) को स्थानांतरित कर दिया गया।)
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