November 17, 2024

पितृ दिवस की पूर्व संध्या पर प्रकाशनार्थ प्रेषित :- हमारे पिताजी महाशय राम स्वरूप :

बाबूराम ( बरेली ब्यूरो चीफ)

बरेली , हमारे सजेरियन जन्म के आस पास जिलाधिकारी बरेली के चीफ रीड़र पद से सेवानिवृत्त पिताजी के ऊपर एक बेटे व दो बेटियों के विवाह सहित हमारे परवरिश का दायित्व था। रिश्वत से परहेज़ के कारण सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें बरेली जंक्शन पर बुक स्टाल चलाना पड़ा उसके बाद अंशकालिक डाकघर शहदाना में पोस्टमास्टर के पद पर कार्य किया। पिताजी के संत प्रवृत्ति व माताजी के परिवार के प्रति समर्पण व सद्व्यवहार से सारे दायित्व यथा समय निबट गये। आज उनके आशीर्वाद से हमारी चारों बहनों व हम दो भाइयों के परिवार सुखी व सम्पन्न हैं।
आम कायस्थ परिवारों की तरह हमारे बाबा की पीढ़ी तक परिवार मांसाहारी रहा पर पिताजी ने युवावस्था में ही आर्य समाज के सम्पर्क में आने पर मांसाहार ऐसा त्यागा कि हमारे चारों बहनोई भी शाकाहारी मिले।
कुछ आर्थिक परेशानी व कुछ मेरी पढ़ाई से विमुखता के कारण मुझे अलीगढ़ मेरे बहनोई डा० एस के सक्सेना जो वहां मलखान सिंह जिला चिकित्सालय में सर्जन थे के पास पढ़ाई के लिये वर्ष 1971 में भेज दिया गया। वर्ष 1977 में पिताजी की मृत्यु के समय मैं अलीगढ़ में ही‌ था जबकि हमारे जीजाजी का स्थानांतरण लखनऊ हो गया था। उस समय विद्यार्थियों को जेब खर्च देने का प्रचलन नहीं था , पिताजी की मृत्यु की सूचना मिलने पर मैं अस्पताल में एनेस्थेटिस्ट डा० एन के सक्सेना से एक सौ रु लेकर बरेली आया था।
पिताजी को संत स्वभाव के कारण उन्हें महाशय की उपाधि से अलंकृत किया गया और सब उन्हें महाशयजी कह कर ही पुकारते थे। उन्होंने आर्य समाज व उसके द्वारा संचालित कालेजों में विभिन्न पदों पर रहते हुए अविस्मरणीय सेवा की।
हमनें विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने कभी क्रोधित होते या पथ से विचलित होते नहीं देखा।

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