लखनऊ, 28 नवम्बर (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश का सियासी रण अब दूसरे चरण में प्रवेश कर गया है। अब शब्दों के तीखे बाणों के साथ ‘फोटो वॉर’ शुरू हो गया है, जिसमें तस्वीरों के लोगों को संदेश देने की कवायद परवान चढ़ने लगी है। हर पार्टी फोटो के जरिये संदेश देने की कोशिश में है। फिर वो चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कंधे पर हाथ रख राजभवन में चहलकदमी की तस्वीर हो या किसी दूसरी पार्टी की अपने सहयोगियों के साथ मुलाकात की कोई और तस्वीर।
डीजीपी सम्मेलन में शामिल होने यूपी की राजधानी लखनऊ आए प्रधानमंत्री मोदी ने यहां दो दिनों तक डेरा जमाया। मुख्यमंत्री योगी भले ही उस सम्मेलन में शामिल नहीं हुए हों, लेकिन उनकी प्रधानमंत्री से मुलाकात की उनकी तस्वीर बराबर आती रही है। पहले दिन मुख्यमंत्री योगी ने मोदी से राजभवन पहुंचकर मुलाकात की। दोनों साथ बैठे थे, तस्वीर जारी हुई, लेकिन मुलाकात सामान्य और तस्वीर भी सामान्य। दूसरे दिन प्रधानमंत्री मोदी और योगी की तस्वीर जारी हुई, जिसमें प्रधानमंत्री ने योगी के कंधों पर हाथ रखा हुआ था। वह तस्वीर अचानक चर्चार्ओं में आ गई। अपने-अपने ढंग से निहितार्थ निकाले जाने लगे। इस फोटो पर विपक्ष ने खूब हल्ला बोला, लेकिन सभी के मन में एक ही सवाल था कि आखिर मुख्यमंत्री योगी के कंधे पर हाथ रखकर प्रधानमंत्री मोदी ने क्या बात की, इस तस्वीर में क्या गहराई छिपी हुई। इस तस्वीर का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यहां 2022 में विधानसभा चुनाव है। एक तस्वीर कई हजार शब्दों की बयानी कर देती है। यूपी भाजपा चुनाव के आकर्षण योगी भी हैं। इसलिए इस तस्वीर से संदेश बहुत साफ है। कई शब्दों पर भारी इस तस्वीर में भाव-भंगिमाओं से समर्थकों और कार्यकतार्ओं को कई संदेश मिले हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी तस्वीरों की सियासत में पीछे नहीं है। उन्होंने गठबंधन या पार्टी में शामिल करने से पहले तस्वीरें जारी करके अपने समर्थकों को संदेश देने का काम किया है। समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच गठबंधन को लेकर भी दोनों पार्टियों में मंथन चल रहा है। रालोद के प्रमुख जयंत चैधरी और सपा मुखिया अखिलेश यादव ने एक दूसरे की तस्वीरें शेयर की और जनता को संदेश देने का भी पूरा प्रयास किया। अखिलेश और जयंत के हुई मुलाकात को इसी कड़ी में देखा जा रहा है और उनकी तस्वीरों से स्पष्ट है गठबंधन का ऐलान बस कुछ ही दिन दूर है। ऐसे ही ओमप्रकाश राजभर से मुलाकात रही हो या फिर लालजी वर्मा और रामअचल राजभर, सबकी तस्वीरें पहले आयी इसके कई दिन बाद कार्यक्रम हुए। उत्तर प्रदेश की राजनीति पर पारखी नजर रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेशक प्रेमशंकर मिश्रा कहते हैं कि “सियासत में प्रतीकों के अपने अलग मायने होते हैं। चुनाव पूरा प्रतीकों का है। भाजपा में सुपर पावर मोदी हैं। चाहे सरकार हो, संगठन हो चाहे पक्ष हो या विपक्ष, उसमें उनकी मुहर बहुत मायने रखती है। सबसे ज्यादा फैन फालोंइंग वाले नेता भी मोदी है। अगर वो किसी की पीठ थपथपाते हैं, किसी के करीब दिखते हैं तो वह जनता के लिए एक संदेश होता है। तस्वीरों की सियासत अहम है। जो तस्वीर दिखती है जनता उसी ओर जाती है। 2014 में सबसे ज्यादा सपा पर हमले हुए लेकिन जब शपथ ग्रहण हुआ, तो मुलायम सिंह को अमित शाह हाथ पकड़ कर ले गये। उस तस्वीर ने अपना संदेश दिया। ऐसे ही 2019 के लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव की एक तस्वीर आयी जिसमें वह बसपा मुखिया से आर्शीवाद लेती दिखी। प्रतीक के तौर पर तस्वीरें बहुत काम की होती है।” वरिष्ठ विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं, “चुनाव के पहले व्यक्तिगत और मानवीय ²ष्टिकोण लाना शुरू कर देते हैं। इस ²ष्टिकोंण में संवेदना, करूणा, दु:ख, प्यार, खुशी है। यह जुड़ने का एक जरिया बनता है। पहले के जमाने की तस्वीर में दिखता है। भीड़ में चल रहे बच्चों को उठा लिया। चाचा नेहरू अपने कपड़े में लगा गुलाब बच्चों को दे देते थे। इन्दिरा गांधी अपनी माला दे देती थी। अखिलेश ने मुलायम के साथ एक तस्वीर जारी जिसमें वह अपने पिता का आर्शीर्वाद लिया। इसके मायने निकाला गया है। चुनाव में पिता का आर्शीर्वाद साथ है। प्रधानमंत्री मोदी ने योगी के साथ एक तस्वीर जारी जिसमें योगी गंभीरता के साथ बात सुनते दिखे। दोनों में एकजुटता दिखी और वह मोदी के हनुमान की तरह है। फिर जयंत चौधरी, अखिलेश की जारी हुई तस्वीर की भी खूब चर्चा हुई। यह अब राजनीतिक दलों के चुनावी प्रचार का हिस्सा बन गया है। सोशल मीडिया भी इसका एक माध्यम बन गया है।”
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