संवाददाता :- सुनील कुमार
रुद्रपुर,(उत्तराखंड)। विश्व थैलेसीमिया दिवस के अवसर पर जिला ऊधम सिंह नगर चिकित्सालय परिसर में स्थापित जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र( डीईआइसी) सभागार में जागरूकता शिविर सभा का आयोजन भी किया गया जिसमें थैलेसीमिया के बारे में जागरूकता बनाए रखने हेतु में विस्तृत चर्चा की गई । शिविर में थैलेसीमिया से पीड़ित दिव्यांगों का पंजीकरण व थैलेसीमिया टेस्ट की जांच भी की गई। सभा की अध्यक्षता मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ मनोज शर्मा ऊधम सिंह नगर ने की एवं संचालन डी ई आई सी कोऑर्डिनेटर कमलेश मिश्रा ने किया। इस अवसर पर सक्षम के प्राणदा प्रान्त प्रमुख एवं पूर्व निर्देशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य डाक्टर ललित मोहन उप्रेती ने मुख्य वक्ता के रूप में प्रतिभाग किया। सीएमएस जिला चिकित्सालय डॉ राकेश सिन्हा बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर वसुधा गुप्ता सामाजिक संस्था सक्षम के जिलाध्यक्ष सक्षम महेश चंद्र पंत व जिला सचिव हरीश पंत भी उपस्थित थे। चिकित्सा विभाग के सहयोग से आयोजित इस जागरूकता शिविर में उपस्थित अभिभावकों थैलीसीमिया पीड़ित दिव्यांगों को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता डॉक्टर उप्रेती ने बताया कि थैलेसीमिया गंभीर रक्त जनित रोग है जो माता-पिता से बच्चों को प्रभावित करता है। इस रोग से ग्रसित पीड़ित को शरीर में निरन्तर खून की कमी होने लगती है जिससे उसे बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है। शरीर में कम से कम 9 ग्राम खून होना आवश्यक है। 7 या 6 ग्राम खून की मात्रा की कमी जानलेवा होती है । खून की आवश्यक मात्रा को शरीर में बनाए रखने के लिए अभिभावकों को बच्चे अथवा प्रभावित पीड़ित पर विशेष ध्यान रखना होता है ताकि उसे समय से आवश्यकतानुसार रक्त चढ़ाया जा सके। यह क्रिया माह में एक या दो बार भी हो सकती है। सभी सरकारी अस्पतालों में थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को निशुल्क रक्त उपलब्ध कराया जाता है। इसके अलावा सरकार ने सभी जिलों में कुछ निजी चिकित्सालय को भी निशुल्क रक्त सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु चिन्हित किया है। थैलेसीमिया प्रभावित बच्चे जन्म के कुछ ही समय पश्चात इसके प्रभाव में आ जाते हैं। माता पिता दोनों में जब थैलेसीमिया माइनर के लक्षण होते हैं तब ऐसे माता-पिता के बच्चों में थैलेसीमिया रोग आ जाता है । हर माह एक या दो बार रक्त चढ़ाने से थैलीसीमिया पीड़ित बच्चों में आयोडीन के अधिकता हो जाती है। जिस कारण उनके गुर्दे, लीवर, दिमाग़ व अन्य महत्वपूर्ण आंतरिक अंगों में आयरन कि अधिक मात्रा जमा होने लगता है और वह अंग भी प्रभावित हो जाते हैं। ऐसे में रक्त की कमी के साथ साथ आयोडीन भी पर भी नियंत्रण रखने के लिए भी इलाज कराना होता है।
प्रत्येक अविवाहित व्यस्क युवाओं को थैलासीमिया माइनर की जांच अवश्य करा लेनी चाहिए। यदि किसी स्त्री अथवा पुरुष में थैलीसीमिया माइनर के लक्षण पाए जाते हैं और वह विवाह कर लेते हैं तो, उनसे उत्पन्न बच्चों का जीवन कष्टमय हो जाता है और लाइलाज बीमारी से पीड़ित हो जाते हैं जिससे अभिभावक भी मानसिक, आर्थिक एवं कई तरह से परेशान व दुखी रहते हैं। कोई भी अभिभावक अपने बच्चे को इस तरह की लाइलाज बीमारी से ग्रसित नहीं देखना चाहता। यदि थैलेसीमिया माइनर से प्रभावित पुरुष किसी स्वस्थ महिला से विवाह करता है तब उनके बच्चों में यह जेनेटिक रोग नहीं आता। इसी प्रकार यदि कोई थैलेसीमिया माइनर प्रभावित स्त्री किसी स्वस्थ पुरुष से विवाह करती है तब भी यह रोग उनके बच्चों में नहीं आता है। अतः युवाओं को इस रोग की गंभीरता को समझते हुए, अपने व बच्चों के भविष्य के प्रति सचेत रहना जरुरी है। थैलेसीमिया माइनर की जांच भी जिला शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्रों में की जाती है।
उन्होंने बताया की थैलीसीमिया पीड़ित बच्चों का यह रोक लाइलाज है, लेकिन उचित देखभाल करने से प्रभावित की उम्र को एक सीमा तक ही बढ़ाया जा सकता है । बोन मैरो ट्रांसप्लांट से लाभ हो सकता है लेकिन यह इलाज अत्यधिक महंगा होने के कारण आम नागरिकों की पहुंच से बाहर है।
डॉ उप्रेती ने बताया की वर्तमान में रक्त संचय निश्चित मात्रा में पैकिंग की जाती है, जिसमें परिवर्तन की आवश्यकता है, क्योंकि थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को सीमित मात्रा में रक्त देना होता है , जिससे शेष अधिकांश रक्त व्यर्थ हो जाता है। उन्होंने मुख्य चिकित्सा को संबोधित कर इस विषय में अवगत कराया।
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ वसुधा गुप्ता ने बताया कि थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के अभिभावकों को जागरूक रहना चाहिए। रक्त की अधिक कमी से पीड़ित की जान को खतरा हो सकता है। इसलिए समय समय पर जांच व आवश्यकतानुसार रक्त चढ़ाने की प्रति सचेत रहना चाहिए। सक्षम जिला अध्यक्ष महेश चंद्र पंत ने बताया कि सरकार ने सात प्रकार की अन्य शारीरिक व्याधियों को दिव्यांगता की श्रेणी की मान्यता दी है, जिसमें थैलेसीमिया रोग भी दिव्यांगता की श्रेणी में रखा गया है । अब थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को भी दिव्यांग अधिकार अधिनियम के तहत दिव्यांगों को मिलने वाली समस्त प्रकार की सुविधाएं जैसे पेंशन, निशुल्क बस रेल यात्रा, यू डी आई डी कार्ड की सुविधा आदि सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं।
अभिभावकों को अपने बच्चों का दिव्यांगता प्रमाण पत्र अवश्य बना लेना चाहिए जिसके लिए सर्वप्रथम बच्चे का थैलेसीमिया पॉजिटिव की रिपोर्ट बनवानी चाहिए, इसके पश्चात बच्चे के दो फोटो , आधार कार्ड, राशन कार्ड, थैलेसीमिया रिपोर्ट, के साथ बच्चे को लेकर, स्थानीय जिला दिव्यांग पुनर्वास केंद्र से संपर्क करना चाहिए । जहां पर उनके दिव्यांग प्रमाण पत्र व यू डी आई डी कार्ड निशुल्क उपलब्ध कराए जाते हैं। इससे अभिभावकों को सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाएं प्राप्त हो सकती है, जिससे उन्हें कुछ राहत अवश्य मिलेगी। माता पिता को अपने बच्चों की प्रति आत्मीयता व स्नेह बनाए रखना चाहिए तथा उनका हौसला बढ़ाते रहना चाहिए। थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के जीवन की सुरक्षा एवं भविष्य के प्रति सरकार निरंतर प्रयत्नशील है। इस अवसर पर थैलीसीमिया पीड़ित बच्चों के अभिभावकों को भी अपनी बात रखने का अवसर दिया गया जिसमें कई अब अभिभावकों ने अपनी बातें कही। गदरपुर से अपने बच्चों को लेकर शिविर में आई हरसिमरन कौर ने बताया कि जब बच्चों के शरीर में खून की मात्रा 6-7 ग्राम रह जाती है तब चिकित्सक रक्त चढ़ाने में आनाकानी करते हैं। उनका कहना है कि संबंधित चिकित्सकों से अनुरोध है कि व ऐसे अभिभावकों व बच्चों के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार के बजाय सहानुभूति व सहयोग करें, ताकि उनका मनोबल बना रहे। श्रीमती कौर ने जिला ऊधम सिंह नगर अस्पताल परिसर में जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र बनाए जाने पर हर्ष व्यक्त किया और इस एक ही छत के नीचे थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को भविष्य में सभी सुविधाएं व इलाज उपलब्ध हो सकेगा यह उम्मीद जाहिर की। शिविर में आये अभिभावकों ने जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र की स्थापना एवं सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रसन्नता जाहिर की एवं शिविर के माध्यम से कई बेहतरीन जानकारियां उपलब्ध कराने हेतु मुख्य चिकित्साधिकारी का आभार व्यक्त किया। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक जिला ऊधम सिंह नगर डॉ . राजेश सिन्हा ने बताया कहा अति शीघ्र जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र में सुविधाओं को और बढ़ाया जाएगा केंद्र में परीक्षण पंजीकरण आदि का कार्य नियमित रूप से किया जा रहा है । इस शिविर में लगभग 40 थैलेसीमिया पीड़ितों के पंजीकरण हुए हैं। जिनके विधिवत चार्ट बनाए कार्ड बनाए जाएंगे ताकि पीड़ितों को रक्त चढ़ाने हेतु नियमितता बनी रहे। अभिभावकों को भी इस कार्ड से सुविधा होगी। मुख्य चिकित्सा अधिकारी उधम सिंह नगर डॉ मनोज शर्मा ने विश्व रक्त दिवस के अवसर पर आए सभी अभिभावकों अभी पीड़ित बच्चों चिकित्सकों एवं सामाजिक संस्था से आए कार्यकर्ताओं का अभिनंदन स्वागत किया शर्मा ने बताया डॉ शर्मा ने बताया सभा को संबोधित करते हुए बताया कि सरकार मानव जीवन की सुरक्षा व चिकित्सा सेवा हेतु तत्पर होकर कार्य कर रही है और शिविर में जो जो भी बातें उठाई गई हैं उन पर गंभीरता से विचार करते हुए उनको समझाया जाएगा और थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के इलाज में चिकित्सकों को सहयोग व सहानुभूति पूर्ण व्यवहार बनाकर उनका उत्सर्जन करने की बात कही।
डॉ शर्मा ने शिविर में उठाए गए नीतिगत मामलों व अन्य सुविधाओं के लिए शीघ्र अति शीघ्र अपने तथा विभागीय स्तर से उपयुक्त इलाज व सुविधाएं उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया। शिविर में भाग लेने वाले समस्त चिकित्सकों सामाजिक संगठनों एवं अभिभावकों के द्वारा एक उत्साहवर्धक सामूहिक गीत के साथ सभा का समापन हुआ।विश्व थैलेसीमिया दिवस के इस शिविर जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र को फोटो, थैलीसीमिय रोग से संबंधित पोस्टर , स्लोगन एवं टेलीविजन के माध्यम से जागरुकता बनाए रखने व महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध कराई गई थी।
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