संवाददाता :- गुड्डू भारती
नैनीताल,(उत्तराखंड)। हाईकोर्ट ने उत्तराखंड प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति एवं लोकायुक्त संस्थान को सुचारू रूप से संचालित किए जाने को लेकर दायर याचिका पर सरकार को आठ सप्ताह में लोकायुक्त की नियुक्ति के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट पेश करने के निर्देश देते हुए नियुक्ति तक लोकायुक्त कार्यालय में खर्च पर भी रोक लगा दी। अगली सुनवाई 10 अगस्त को होगी |
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ में मंगलवार को हल्द्वानी गौलापार निवासी समाजसेवी रविशंकर जोशी की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई।
पिछली तिथि पर कोर्ट ने सरकार से शपथपत्र के माध्यम से यह बताने को कहा था कि लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए अभी तक क्या किया और संस्थान जब से बना है तब से 31 मार्च 2023 तक इस पर कितना खर्च हुआ। कोर्ट ने इसका वर्षवार विवरण पेश करने को कहा था।
सरकार की ओर से बताया गया कि 2010-11 से अब तक संस्था को आवंटित 36 करोड़ रुपए में से करीब 30 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं और इस वर्ष भी दो करोड़ 44 लाख रुपए का आवंटन किया गया है। याचिका में कहा गया था कि लोकायुक्त संस्थान के नाम पर वार्षिक 2 से 3 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं परंतु प्रदेश सरकार ने आज तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की है। याची ने कहा था कि कर्नाटक तथा मध्य प्रदेश में लोकायुक्त की ओर से भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जा रही है परंतु उत्तराखंड में तमाम घोटाले हो रहे हैं और लोकायुक्त न होने से छोटे से छोटा मामला भी उच्च न्यायालय में लाना पड़ रहा है।
याचिका में विजिलेंस और एसआईटी जैसी जांच एजेंसियों की ओर से एनएच 74 मुआवजा घोटाला, समाज कल्याण विभाग में छात्रवृत्ति घोटाला, स्वास्थ्य विभाग के एनएचएम में दवा खरीद घोटाले जैसे अनेक प्रकरणों को ठंडे बस्ते में डालने का आरोप लगाते हुए राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच एजेंसी के रूप में लोकायुक्त की नियुक्ति की मांग की गई थी।
जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर उठाए थे सवाल
याची ने कहा था कि वर्तमान में राज्य की सभी जांच एजेंसी सरकार के अधीन है जिसका पूरा नियंत्रण राज्य के राजनैतिक नेतृत्व के हाथों में रहता है। वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में कोई भी ऐसी जांच एजेंसी नही है जिसके पास यह अधिकार हो कि वह बिना शासन की पूर्वानुमति के राजपत्रित अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार का मुकदमा पंजीकृत कर सके या जांच कर किसी न्यायालय में चार्जशीट दाखिल कर सके। यहां राज्य सरकार के प्रभाव एवं हस्तक्षेप से मुक्त ऐसी कोई भी जांच एजेंसी नहीं है, जो मुख्यमंत्री सहित किसी भी जनप्रतिनिधि या किसी भी लोकसेवक के विरुद्ध स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच और कार्यवाही कर सके। स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के नाम पर प्रचारित किया जाने वाला विजिलेंस विभाग भी राज्य पुलिस का ही हिस्सा है, जिसका सम्पूर्ण नियंत्रण पुलिस मुख्यालय, सतर्कता विभाग या मुख्यमंत्री कार्यालय के पास ही रहता है। इस कारण राज्य की विजिलेंस का भारतीय प्रशासनिक सेवा, राज्य प्रशासनिक सेवा के किसी अधिकारी या किसी शीर्ष राजनैतिक व्यक्ति पर कार्यवाही का कोई भी उदाहरण नहीं है।
जांच की निष्पक्षता पर जताया था संदेह याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार के नियंत्रण वाली इन जांच एजेंसियों में जांच एजेंसी को किन-किन बिंदुओं पर जांच करनी है, जांच एजेंसी में नियुक्ति व स्थानांतरण सहित सभी प्रशासनिक अधिकार, जांच समिति का बजट, चार्जशीट दाखिल करने की स्वीकृति देना, अभियोग दर्ज करने की स्वीकृति देना, जांच के दौरान जांच की पूरी मॉनिटरिंग, जांच के दौरान जांच अधिकारियों को विभिन्न निर्देश देना, जांच के दौरान जांच की समीक्षा करना आदि पूरा नियंत्रण राजनैतिक नेतृत्व के हाथों में रहता है। कई बार तो जांच के बीच में ही, बिना उचित कारण के पूरी जांच एजेंसी को ही बदल दिया गया है। वर्तमान व्यवस्था में उपलब्ध सभी जांच एजेंसियों में राज्य सरकार के नियंत्रण वाले कर्मचारी और अधिकारी ही जांच- अधिकारी होते है, इसलिए स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच पूरी तरह से सत्ताधारी दल की मंशा और उसके राजनैतिक एजेंडे पर निर्भर करती है। राज्य के अब तक के इतिहास में किसी शीर्ष राजनैतिक या प्रशासनिक व्यक्ति की जांच और कार्यवाही का नहीं होना इसका प्रमाण है।
राज्य की लगभग हर प्रतियोगी परीक्षा में हुई धांधली, खनन-भूमि सहित प्रशासनिक स्तर पर गंभीर भ्रष्टाचार के अनगिनत प्रकरणों में, जनप्रतिनिधियों व लोकसेवकों की ओर से अर्जित की गई अकूल संपत्ति सहित किसी भी प्रकरण में वर्तमान की किसी जांच एजेंसी ने आजतक कोई स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच का उदाहरण प्रस्तुत नहीं किया है।
यही कारण है कि प्रदेश के किसी भी नागरिक को वर्तमान जांच व्यवस्था पर विश्वास नहीं रह गया है जिसका परिणाम कुछ दिन पूर्व राज्य की प्रतियोगी परीक्षाओं के युवाओं की ओर से हताशा और आक्रोश में की गई हिंसा के रूप में सामने आया है। भ्रष्टाचार से समाज कुंठित और अराजक होता जा रहा है।
चुनाव जीतने के बाद अमल न करने का आरोप
याचिका में कहा गया था कि पूरी तरह से पारदर्शी, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच व्यवस्था राज्य के नागरिकों के लिए कितनी महत्वपूर्ण है, इसका प्रमाण है कि पूर्व के विधानसभा चुनावों में राजनैतिक दलों की ओर से राज्य में अपनी सरकार बनने पर प्रशासनिक और राजनैतिक भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए एक सशक्त लोकायुक्त की नियुक्ति का वादा किया गया था। जिसका प्रभाव यह हुआ कि राज्य की जनता ने उक्त राजनीतिक दल को बहुमत देकर राज्य की सत्ता सौंपी, पर स्वयं के ऊपर लोकायुक्त जैसे किसी सशक्त निगरानी तंत्र को लागू नहीं होने देने की मंशा से राजनैतिक नेतृत्व ने रा
राज्य में आजतक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की है।
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