नई दिल्ली, 16 अगस्त (आईएएनएस)| उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने रविवार को दिल्ली के कई स्कूलों में नवगठित स्कूल प्रबंधन समिति(एसएमसी) के सदस्यों के साथ संवाद किया। इस दौरान उन्होंने एसएमसी को स्कूलों की कैबिनेट बताते हुए खुद फैसले करने और संसाधन जुटाने की सलाह दी। सिसोदिया ने पटपड़गंज तथा पश्चिम विनोद नगर में नवगठित एसएमसी से संवाद किया। उन्होंने कहा, “दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 98 फीसदी रिजल्ट आने में एसएमसी का बड़ा योगदान है। वर्ष 2015 में जब मैं स्कूलों में जाता था, तो प्रिंसिपल बताते थे कि हर काम के लिए सरकार पर निर्भर होना पड़ता है। किसी विषय के शिक्षक की कमी हो या स्कूल परिसर की घास कटवानी हो, हर चीज की फाइल डिप्टी डायरेक्टर के पास घूमती रहती थी। लेकिन हमने ऐसे सभी फैसलों का अधिकार प्रिंसिपल को दे दिया।”
दिल्ली सरकार के मुताबिक हर स्कूल एक अलग सरकार है जिसके मुखिया प्रिंसिपल हैं और एमएमसी उनकी कैबिनेट है। आप स्वयं संसाधन जुटाएं, और स्कूल का विकास करें। सरकार से मिले संसाधन के अलावा समाज से भी योगदान लेकर स्कूल का विकास करें। हमारी यही कोशिश है कि स्कूल का पूरा दायित्व खुद एसएमसी संभाले। राज्य सरकार की भूमिका सिर्फ भवन और संसाधन देने की हो।
कई स्कूलों में बच्चों के पेयजल के लिए एसएमसी सदस्यों ने जनसहयोग से आरओ सिस्टम लगवाए हैं। किसी स्कूल में किसी विषय के शिक्षक की कमी होने पर कुछ समय के लिए वैकल्पिक व्यवस्था कर दी गई। एक स्कूल में इकोनोमिक्स के शिक्षक नहीं थे तो एसएमसी सदस्यों एक यूनिवर्सिटी प्रोफेसर की कुछ दिनों क्लास लगवा दी।
दिल्ली सरकार ने एसएससी सदस्यों को आऊट ऑट द बॉक्स सोचने की सलाह दी है। शिक्षकों से कहा गया है कि यदि स्कूल के चार बच्चे कमजोर हों, तो किसी गाय-भैंस पालने वाले से कहकर उन बच्चों को दूध का इंतजाम कराने की सोचें। अगर मोबाइल की कमी के कारण दस बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा बाधित हो, तो जनसहयोग से उनका इंतजाम करने की सोचें।
सिसोदिया, ” शिक्षा तो ऐसी चीज है, जिसके लिए बड़े-बड़े लोग भी दान मांगते हैं और मिलता भी है। आप खुद के लिए कुछ मांगेंगे तो नहीं मिलेगा, लेकिन बच्चों की शिक्षा के लिए हाथ फैलाएंगे तो समाज की भरपूर मदद मिलेगी।”
इस दौरान एसएमसी के विभिन्न सदस्यों ने महत्वपूर्ण सुझाव देते हुए स्कूल संचालन के दायित्व पर प्रसन्नता जाहिर की। शिक्षकों के अनुसार स्कूल प्रबंधन समितियों के कारण अभिभावकों के साथ एक सहयोगी रिश्ता कायम हुआ है तथा हर चीज के लिए शिक्षा अधिकारियों पर से स्कूल की निर्भरता कम हुई है।
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